भारत देश में ऐसे कई अन्य आईएस होते हैं जिनकी संकट के कहानी बहुत कठिन होती है जिनके बारे में आप सोच भी नहीं सकते और उन्होंने अपने जीवन में ऐसे ही कठिनाइयों का सामना किया होता है आज दिस कहानी के बारे में हम आप सभी लोगों को बताने वाले हैं उसमें बचपन में माने गलियों गलियों में घूमकर चूड़ी भेजा करती थी लेकिन जब बच्चे ने मेहनत करनी शुरू कर दी तो उसने अपने मां को ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया और इतनी समाज में दिला दी जिसकी कभी कल्पना भी नहीं कर सकती थी यह केवल एक मां का दृश्य कल था कि उसने कभी हार नहीं मानी अपने जीवन में।
छोटे भाई ने रात-दिन कठिन परिश्रम कर उठाया था पढ़ाई का खर्च
जैसे कि हमने आपको अभी थोड़ी देर पहले बताया कि व सीमा के घर की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब होने के कारण उन्होंने अपने जीवन में बहुत सारे कष्ट झेले हैं साथ ही साथ इनकी मां ने परिवार का खर्च उठाने के लिए अपने गांव में घूम-घूम कर चूड़िया भी भेजें है इसके साथ ही उनका एक छोटा भाई है जो कि रिक्शा चलाया करता था वसीमा के छोटे भाई की लगन और मेहनत का ही नतीजा है कि वसीम आगे पढ़ाई पूरी कर सके एक छोटी मोटी कंपनी में जॉब करनी शुरू कर दी सीमा ने ग्रेजुएशन के बाद। बस सीमा जी ने अपने शुरुआती शिक्षा अपने ही पुराने गांव से पूरी करी फिर उसके बाद उन्होंने प्रखंड के एक उच्च विश्वविद्यालय से अपने आगे की शिक्षा प्राप्त करें इस प्रकार से उन्होंने सरकारी स्कूल द्वारा ही अपनी सभी शिक्षा प्राप्त करें और जीवन में आगे बढ़ी आपको हम बता देते हैं कि वह सीमा से बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में काफी तेज थी।
18 वर्ष की छोटी सी उम्र में ही हो गई थी शादी
वसीमा ने अपने जीवन में बहुत कुछ कर दिखाने के सपने देखे थे लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए उन्हें समय पूरा नहीं मिल सका क्योंकि जैसे ही हमारे समाज में अफसर हुआ करता है समाज में लड़कियों की शादी बहुत ही ज्यादा कम उम्र में कर दी जाती है उनकी शादी केवल 18 वर्ष की छोटी सी आयु में ही हो गई थी परंतु भाग्य ने उनका साथ दिया और उनके पति का नाम शेख हैदर है जो उस समय महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन की तैयारी कर रहे थे जिससे वह सीमा को भी पढ़ाई लिखाई में सहायता मिली और उनके पति ने हमेशा उनका साथ दिया पढ़ाई लिखाई में।
हमेशा दूसरों की सफलता को देखकर लिया करते थे प्रेणा
जब सीमा न्यूज़ पेपर में पढ़ा करती थी कि किस तरीके से दूसरे व्यक्ति अपने जीवन में सफलता की सीढ़ी चढ़ते हैं उन्हें देखकर वह हमेशा प्रेरित होती थी उन्होंने महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा देने का निर्णय कर लिया था और उसके लिए दिन-रात तैयारी करने में जुट गई थी उसके बाद उन्होंने निर्णय किया कि वह अपने आगे की पढ़ाई पुणे जाकर करेंगे इसके बाद सन् 2018 में बने महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा दी थी अपने घर का खर्चा चलाने के लिए। अपने जीवन के लक्ष्य को पाने के लिए। फिर वर्ष 2020 में वह महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा में ना सिर्फ पास हुई बल्कि पूरे महाराष्ट्र में महिलाओं की श्रेणी में उन्हें तीसरा स्थान प्राप्त हुआ जिससे कि उनके परिवार वालों को बेहद खुशी हुई और उन्होंने अपना सपना भी पूरा किया है इस प्रकार से वसीम शेख ने डिप्टी कलेक्टर बन अपने सपने को पूरा किया स्टोरी सुनने के बाद लाखों स्टूडेंट उनसे प्रेरणा ले सकते हैं कि किस तरीके से उन्होंने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी और अपनी सफलता की सीढ़ी चढ़ी।