कैसे मिला चांद पर हजारों लीटर जमा हुआ पानी!

मानव को चांद पर पहुंचे कई वर्ष बीत चुके हैं मगर आज भी चांद से जुड़े कई राज ऐसे हैं जिन्हें हम आज तक नहीं जान पाए हैं चांद अपने आप में एक रहस्य में स्थान है जिसके राज से पर्दा उठाने की कोशिश दुनिया के कई वैज्ञानिक कर रहे हैं और इसी कोशिश का हिस्सा थाना सा का किया गया मिशन। यह बात है सन 2009 की जब अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने एक 2 टन रजनी रॉकेट करीब 9000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चांद की सत्य से टकराया था यह टकराव नासा ने जानबूझकर करवाया था ताकि इस टकराव से उड़ने वाली धूल से यह जानना जा सके कि चांद के अंधेरे वाले हिस्से में आखिर क्या मौजूद है और चांद के उन राज से पर्दा हटाया जा सके जो आज तक राज हैं ।

कैसा रहा था परीक्षण?

साल 2009 में यह एक बेहद ही सफल परीक्षण रहा था वह 2 टन वजनी रॉकेट जिसका नाम लूनर क्रेटर ऑब्जरवेशन एंड सेंसिंग सैटेलाइट (LCROSS) मिशन को जान बूझकर चांद की सतह से टकराया था. ताकि यह पता कर सकें कि चांद के अंधेरे वाले हिस्से में रॉकेट टकाराता है तो वहां से क्या निकलता है? किस तरह की धूल या धुआं बाहर निकलता है.टक्कर के समय की तस्वीरें ले सके. इसके अलावा नासा का लूनर रीकॉनसेंस ऑर्बिटर दूर से सारे नजारे का जायजा ले रहा था. जब वैज्ञानिकों ने दोनों ही अंतरिक्षयानों की तस्वीरों को देखा तो हैरान रह गए… उन्हें चांद की सतह पर रॉकेट की टक्कर से उठी धूल में 155 किलोग्राम पानी का भाप।

कैसे किया गया चांद के राज से पर्दा फाश?

इस परीक्षण से यह साबित हो गया कि चांद की सतह पर बर्फ के रूप में मौजूद हैं। और ऐसा अनुमान भी लगाया गया कि कहीं हजारों लाखों लीटर पानी चांद की सतह पर जमा हुआ है इससे यह शेष भी मिलते हैं कि चांद एक समय पर एक जिंदा उपग्रह था। नासा का यह परीक्षण बेहद सफल रहा था और इस परीक्षण सेनासा को एक अलग पहचान मिली थी नासा ने अपने आज तक के सफर में कई सफल अंतरिक्ष मिशन किए हैं मगर यह मिशन उन सब मिशन में से बेहद खास था क्योंकि इस मिशन के जरिए चांद के उन राज से पर्दा हटाया जा सका जो आज तक मानव सभ्यता को पता नहीं थे।