जब भी किसी लंबी दूरी की यात्रा करनी हो, तो सबसे पहले ख्याल रेल का ही आता है। रेल से यात्रा करना आरामदायक और सुविधाजनक होता है। ज्यादातर लोग लंबी यात्रा रेल से ही करना पसंद करते हैं। रेल रोजाना ही लाखों यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाती है। अक्सर लोग ट्रेन में आरामदायक यात्रा करने के लिए पहले से ही एडवांस में रिजर्वेशन करवा लेते हैं, ताकि वह अपनी यात्रा बिना किसी परेशानी के आराम से कर पाएं।अगर सोचिए आपने एडवांस में ही रिजर्वेशन करवा लिया है। जब आप यात्रा करने के लिए रेल में पहुंचे और आपको बर्थ ना मिले तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? जाहिर सी बात है कि रिजर्वेशन कराने के बावजूद भी अगर आपको बर्थ नहीं मिलती है, तो आपको बहुत परेशानी होगी। हो सकता है कि इसकी वजह से आपको अपनी पूरी यात्रा खड़े-खड़े भी करनी पड़ जाए। कुछ ऐसा ही बिहार के बुजुर्ग यात्री इंद्र नाथ झा के साथ हुआ था।
क्या है पूरा मामला?
दिल्ली के साउथ डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रेड्रेसल कमीशन ने इंद्र नाथ झा की शिकायत पर ईस्ट सेंट्रल रेलवे के जनरल मैनेजर को यह हर्जाना देने का आदेश दिया है।आयोग ने कहा कि लोग आरामदायक यात्रा करने के लिए एडवांस में ही रिजर्वेशन कराते हैं लेकिन शिकायतकर्ता को इस यात्रा में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।शकायत के अनुसार ट्रेन अधिकारियों ने झा की कंफर्म टिकट किसी और यात्री को बेच दी थी। जब इंद्र नाथ झा ने इस विषय में टीटीई से पूछा तो उन्हें बताया गया कि स्लीपर क्लास में उनकी सीट को एसी में अपग्रेड कर दिया गया है, जिसके बाद इंद्र नाथ झा वहां पहुंचे लेकिन वहां पर भी ट्रेन अधिकारियों ने उन्हें वह बर्थ नहीं दी थी। इसकी वजह से उन्हें दरभंगा से दिल्ली तक की यात्रा खड़े-खड़े ही करनी पड़ गई थी। उनको इस यात्रा में बहुत परेशानी का सामना करना इस शिकायत का विरोध करते हुए रेलवे अधिकारियों ने कहा कि इस मामले में उनकी कोई गलती नहीं थी। उनकी दलील थी कि झा ने बोर्डिंग प्वाइंट पर ट्रेन में नहीं पकड़ी और 5 घंटे बाद किसी और स्टेशन पर ट्रेन पकड़ी। उनका कहना था कि टीटीई को लगा कि उन्होंने ट्रेन नहीं पकड़ी है और नियमों के मुताबिक यह सीट वेटिंग पैसेंजर को दे दी गई थी।
ऐसा निकला है परिणाम!
जब रेलवे अधिकारियों ने अपनी दलील दी, तो आयोग ने उनके द्वारा दी गई दलील को नहीं माना। आयोग के द्वारा ऐसा कहा गया कि स्लीपर क्लास के टीटीई ने एसी के टीटीई को बताया था कि पैसेंजर ने ट्रेन पकड़ ली है और वह बाद में वहां पहुंचेंगे। आयोग ने कहा कि शिकायतकर्ता को रिजर्वेशन के बाद भी कोई बर्थ नहीं दी गई और उन्हें बिना सीट के यात्रा करनी पड़ी। किसी यात्री को अपने रिजर्व बर्थ पर बैठने का अधिकार है और इसमें किसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं है। अगर बर्थ अपग्रेड कर दी गई थी तो उन्हें वह बर्थ मिलनी चाहिए थी।आयोग के द्वारा ऐसा कहा गया कि यह रेलवे की लापरवाही का मामला है। झा ने यात्रा से एक महीने पहले ही रिजर्वेशन करवाया हुआ था, लेकिन इसके बाद भी उन्हें अपना सफर खड़े-खड़े करना पड़ा। अगर उनका बर्थ अपग्रेड किया गया था तो फिर इसकी जानकारी क्यों नहीं दी गई। आयोग ने यह कहा कि रेलवे के अधिकारियों ने यात्री का बर्थ देने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की जबकि वह इसके हकदार थे। जाहिर है कि यह रेलवे की तरफ से घोर लापरवाही का मामला है। अब आयोग ने बुजुर्ग यात्री को एक लाख हर्जाना देने का आदेश दे दिया है।