हरियाणा के करनाल में एक बहुत ही पुरानी कहावत है कि अगर बेटे भाग्य से होते है तो बेतिया सौभाग्य से। बेतिया अपने कुल को रोशन करती है, वह अपना माइका रोशन करती है बल्कि अपना ससुराल भी रोशन करती है। अगर वोह बेटी एक मुकाम हासिल करले तो वोह पूरे जग को रोशन कर सकती है। और ऐसी ही एक बेटी की खबर हम आपको देने वाले है आज।
बचपन से ही किस तरीके से समाज के लिए बढ़ चढ़ कर आगे काम कर रही थी, बेटी होने के नाते बेटिओ के लिए ही अपनी आवाज़ उठती हुई नज़र आ रही थी। चाहे कन्या ब्रुन हत्या की ही बात हो या पर्यावरण बचाओ की बात। संजोली बनर्जी को दुनिया का सबसे प्रतिस्तिथ पुरूस्कार “डायना पुरूस्कार” मिला है इस तस्वीर में आप देख सकते है कि वरचुअल तरीके से संजोली को इंग्लैंड कि तरफ से डायना पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है। इस पुरूस्कार में यह लिखा है कि संजोली बनर्जी दुनिया को बदल सकती है।
यह बेटी कुछ भी बदल सकती है क्युकी बचपन से ही इन्होने ठाना था कि मैं दुनिया को बदल सकती हूँ और किसी को भी बदल सकती हूँ और इसी सोच को लेकर यह आगे आयी। इनके पिता मिहिर बनर्जी जो कि एक जाने माने शिक्षक है करनाल के उनके भी कई छात्र ऊचे ऊचे मुकाम हासिल कर चुके है। और आज उनकी बड़ी बेटी संजोली बनर्जी को भी इंग्लैंड के डायना पुरूस्कार मिला।
संजोली सिर्फ 22 साल की है और इस उम्र में उन्होंने वोह पुरूस्कार हासिल किया है जिसे हासिल करने के लिए बहुत ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय पद पर मेहनत करनी पड़ती है और बहुत से लोगो के बीच अपनी पहचान बनानी पड़ती है। संजोली बनर्जी ने इंटरव्यू में कहा कि मैं बहुत खुश हूँ और मैं बहुत सम्मानित महसूस कर रही हूँ। संजोली ने कहा की यह सिर्फ मेरे लिए नहीं, कर्नल, उत्तर प्रदेश, और मेरे देश के लिए बहुत गर्व की बात है। मैंने यह जो भी कार्य किया अपने देश का नाम रोशन करने के लिए किया। और आज इंग्लैंड तक यह बात गयी है, मेरे देश का नाम ऊचा हुआ है और मुझे इस बात की बहुत ख़ुशी है।
उन्होंने युवाओ को एक सन्देश भी दिया और कहा की युवाओ में बहुत ताकत होती है उसको बस पहचाने की ज़रूरत है। हम अगर सब एक एक करके कोई कारण पकड़ के उसपे काम करे तो हम बहुत कुछ कर सकते है। संजोली बहुत सारी देश की लड़कीओ के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। 22 साल की उम्र में दुनिया का सबसे प्रतिश्ठित पुरूस्कार हासिल करना कोई छोटी मोती बात नहीं है। संजोली ने बताया की यह 17 साल की म्हणत आज कामयाब हुई है। यह सिर्फ एक दो कार्य करने से नहीं पुरूस्कार नहीं मिलता है। इस पुरूस्कार के लिए पूरी दुनिया से इसके लिए नामांकन करते है।
उसमे से कुछ लोग चुने जाते है और भारत से कुछ लोगो के बीच में से मुझे यह पुरूस्कार मिला है। संजोली बनर्जी ने सबसे पहले 2004 में बेटी बचाओ आंदोलन कन्याभूण हत्या के खिलाफ शुरू किया, फिर 2009 उन्होंने धरती बचाओ का आंदोलन में भाग लिया जो की पर्यावरण की सुरक्षा करने से जुड़ा था। इन्होने 4500 किलोमीटर की देश के 7 राज्यों में आंदोलन किए। लोगो को गांव गांव जाकर लोगो से बात करना कॉलेजेस और स्कूलों में भी जाकर भासन दिए और बच्चो को समझाया- सिखाया।
उसके बाद उन्होंने 2019 में उन्होंने उन्होंने अपना मोबाइल स्कूल खोला सुशिक्षा के नाम से जिसमे लोगो को शक्तिकरण (शिक्षा के द्वारा ) दिया। संजोली ने सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया में भी 100 घंटो से ज्यादा स्वयं सेवा करी। वह पर उन्हें एक दिन का सांसद बनने का भी मौका मिला। वह वह पर इंटरनेशनल स्टूडेंट डिपार्टमेंट की सचिव रही। संजोली ने और भी बहुत बड़े बड़े काम करे है अपनी ज़िन्दगी में और मुकाम हासिल करे है।