गली गली में घूम “कंधों पर 90Kg वजन लेकर” बेचते थे साड़ियां, लेकिन “दिहाड़ी” कर अपने दम पर बनाई करोड़ों की कंपनी

हमने हमेशा अपने बड़ों से यही सुना है ,कि कभी भी किसी बड़े काम की शुरुआत छोटे-छोटे कदमों से ही होती है। लेकिन जो व्यक्ति उन छोटे-छोटे कदमों को उठाने से डर जाता है। वह अपने जीवन में कभी भी सफल नहीं हो पाता। लेकिन आज हम आपको जिस शख्स की कहानी सुनाने वाले हैं। उन्होंने अपने जीवन में कभी भी हार नहीं मानी और अपने छोटे कदम के चलते वह आज करोड़ों की संपत्ति वाली कंपनी के मालिक बन गए हैं और यह केवल और केवल मुमकिन हो पाया है। उनकी कड़ी मेहनत और परिश्रम के कारण।

परिश्रम की अनोखी कहानी

Shri Biren Kumar Basak belongs to Nadia in West Bengal. He is a reputed weaver, who depicts different aspects of Indian history and culture in his Sarees. During the interaction with the Padma Awardees, he presented something to me which I greatly cherish. pic.twitter.com/qPcf5CvtCA

— Narendra Modi (@narendramodi) November 13, 2021

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बड़ी ही अनोखी है इस शख्स की कहानी करी अपने जीवन में कड़ी मेहनत तब जाकर मिली अपने जीवन में इतनी ज्यादा सफलता। बात कुछ इस प्रकार की है कि 1987 में जब उन्होंने आठ लोगों की मदद से अपनी दुकान शुरू की थी, तब वह बहुत छोटे स्तर से शुरू किए थे। अब वे एक पद पर हैं, जहां वे हर महीने सोलह हजार हाथ से बुनी हुई साड़ियाँ बेचते हैं। कोई भी उनके जीवन और उनकी यात्रा को आसानी से देख सकता है और महसूस कर सकता है कि कैसे दृढ़ता और गंभीर दृढ़ संकल्प से कुछ ही वर्षों में सब कुछ बदल सकता है।

1962 में वापस धार्मिक तनाव का सामना करते हुए परिवार को अपना घर छोड़कर फुलिया जाना पड़ा। अपनी शिक्षा के लिए संघर्ष करते हुए, बसाक को अंततः अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़नी पड़ी और एक बुनाई केंद्र में काम करना शुरू कर दिया, जहाँ वे बहुत कम पैसा कमाते थे।

गलियों में घूम घूम कर बेचा करते थे साड़ियां

वीरेंद्र ने अपने इस काम की शुरुआत वर्तमान बांग्लादेश में तंगेल नामक स्थान से शुरू करी थी। उन्होंने बुनाई और कई भाई बहनों के काम में शामिल परिवार से आने वाले बस आपको शुरू से ही पता था। उन्होंने बताया कि उन्हें वह दिन आज भी याद है जब वह कोलकाता की गलियों में घूमा करते थे और गर्मी और धूल के बीच केवल साड़ियों का भार नहीं बल्कि जिम्मेदारियों की आप लेकर सारी गलियों में घूमा करते थे।

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विपरीत परिस्थितियां मेकई बार आई उनके जीवन में लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी और ना ही कभी भी वह विकट परिस्थितियों के आगे झुके। उनके काम को सन 2013 में कपड़ा मंत्रालय द्वारा संत कबीर पुरस्कार के रुप में भी पुरस्कृत किया गया। जिससे कि आप सभी लोगों को पता चलता है कि उन्होंने अपने जीवन में कितनी ज्यादा संघर्ष करें।